पाकिस्तान और अलगाववाद को तगड़ा झटका, 370 हटने के बाद अलगाववादियों पर कस गया शिकंजा

जम्मू

सैयद अली शाह गिलानी (फाइल फोटो)

कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी के ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस से अलग होने से पाकिस्तान को सबसे तगड़ा झटका लगा है। पाकिस्तान को अब घाटी में अलगाववाद तथा आतंकवाद के एजेंडे को आगे बढ़ाने में काफी मुश्किलें आएंगी। घाटी में गिलानी को पाकिस्तान का चेहरा माना जाता रहा है। दरअसल, अनुच्छेद 370 हटने के बाद भारी दबाव झेल रहे गिलानी ने भांप लिया था कि अब घाटी में अलगाववाद की जड़ें मजबूत नहीं हो सकती हैं। राज्य का विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद घाटी में किसी तरह की अशांति न होने से भी पाकिस्तान तथा आईएसआई अलगाववादी नेता से नाराज था। इस वजह से उन्होंने हुर्रियत से नाता तोड़ लिया।

घाटी में भारत विरोधी एजेंडा चलाने के लिए गिलानी को पाकिस्तान सरकार तथा आईएसआई का खुला समर्थन था। वह आतंकी संगठनों को समर्थन देने के साथ ही पत्थरबाजों को भी प्रश्रय देता था। पूरी घाटी में उसने पत्थरबाजों की टीम बना रखी थी। यहां तक कि महिला पत्थरबाजों का भी गैंग तैयार कर रखा था। इसके लिए पत्थरबाजों को पैसे का भी भुगतान किया जाता था। व्हाट्सएप ग्रुप के जरिये पत्थरबाज जुड़े रहते थे। पाकिस्तान से इन्हें नियंत्रित किया जाता था।
एनआईए ने अपनी जांच में 300 से अधिक व्हाट्सएप ग्रुप चिह्नित किए गए थे। दुख्तरान-ए-मिल्लत की अध्यक्ष और महिला अलगाववादी आसिया अंद्राबी के नेतृत्व में हिजबुल कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद व्यापक पैमाने पर भड़की हिंसा में पहली बार छात्राओं को पथराव के लिए सड़क पर उतारा गया था। पूरी घाटी में लगभग तीन महीने तक भारी पैमाने पर पत्थरबाजी होती रही थी। इसमें सुरक्षा बलों के कैंप से लेकर विभिन्न पार्टियों के नेताओं तक को निशाना बनाया गया। स्कूल-कालेज के  विद्यार्थियों ने भी पथराव किया। हिंसा को देखते हुए सुरक्षा बलों ने पैलेट गन का इस्तेमाल किया था। इसमें मासूमों समेत कई लोगों की आंख की रोशनी चली गई थी। पैलेट गन पर काफी हंगामा मचा। तब तत्कालीन केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में संसदीय दल को घाटी आना पड़ा था।
सैनिक कॉलोनी से लेकर कश्मीरी पंडितों की कॉलोनी तक का किया था विरोध
गिलानी पाकिस्तान का एजेंडा चलाते हुए भारत के खिलाफ लोगों को भड़काने में किसी प्रकार की कसर नहीं छोड़ते थे। सैनिक कॉलोनी का मुद्दा हो या फिर कश्मीरी पंडितों की कॉलोनी बनाने का, हर बार पाकिस्तान के इशारे पर भारी विरोध प्रदर्शन किया जाता रहा। भाजपा सरकार में जब कश्मीरी पंडितों की घाटी में ससम्मान वापसी के लिए ट्रांजिट कॉलोनी की बात उठी तो गिलानी के इशारे पर बवाल शुरू हो गया। इस वजह से इस प्रक्रिया को कुछ दिन रोकना पड़ा था।

मोदी सरकार की दबाव का प्रतिफल: हरि ओम
जम्मू-कश्मीर की राजनीति के विश्लेषक प्रो. हरि ओम का कहना है कि कश्मीर में सब कुछ बर्बाद करने के बाद अब उम्र के आखिरी पड़ाव में हुर्रियत से हटने से कुछ नहीं होने वाला। जब वह विधानसभा में आया था तभी से कट्टरवाद का बीज बोना शुरू कर दिया था। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 जून, 2018 से ही काम करना शुरू कर दिया था, जिसके तहत जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाया गया था। यह सब केंद्र सरकार के दबाव का प्रतिफल है।

 

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